Bhagvad Geeta Ch. 03- Our Understanding-DS Joyride Life 3rd- 10th Nov 2020

Insight-Understanding-गहरी सोच
Ch 03- Karam Yog
If at all something is pertinent, essential, necessary to run our life,
Universe, growth, spiritual and material progress and according to the commandment by the creator Is KARMA.
If something is missing in 21st century right methodology to work NOT work as Karma. Karma in the form actions, performance, Purushartha is in abundance and even nights are not existing and what for only gratification of our senses – भोगबुधी and degrade to animal instinct.
Yog is missing with Karma So now YogKama is a need.
Ch 03, Ch 04, Ch 05 are exclusively on Karam + Yog
The Bhagavad Gita, an ancient sacred text of India is regarded universally as the prime source of spiritual knowledge and inspiration for the humankind. Spoken directly by Lord Sri Krishna to His intimate friend Arjuna, the Bhagavad Gita’s seven hundred verses provide a definitive guide to the science of self-realization. No other book reveals, in such a lucid and profound way, truths like the Bhagavad Gita does. The Bhagavad Gita which is also known as the Divine Song is unique in many ways. | ![]() |





3:1-7 बुद्धि(ज्ञान योग) – Sankhya Yog और कर्मयोग दोनो का explanation और दोनो का एक दूसरे से सम्बंध क्या है।
बुद्धि(ज्ञान योग) – Sankhya Yog ?
1. आप कौन हैं और आत्मा क्या है। आत्मा, अजर (जो सदा एक सी रहती है उम्र का प्रभाव नहीं होता) और अमर (जो कभी समाप्त नहीं होती) है। आत्मा चेतना है जैसे फूलों में गंध होती है। हमारा शरीर फ़ूल है और आत्मा उसकी सुगंध। एक फ़ूल के सूख जाने पर गंध दूसरे फ़ूल में उत्पन्न हो जाती है।
2. आत्मा की प्रकृति को समझना और आत्मा के प्रयोजन को समझना ही ज्ञानयोग है। वेद शास्त्रों में इसका सम्पूर्ण वर्णन है।
कर्म क्या है?
1. हमारी परिस्तिथि, गुण और कर्तव्य के अनुसार कार्य करना ही कर्म है।
2. निष्काम कर्म क्या है – गीता का सबसे बड़ा श्लोक। कर्मणय वाधिकरस्ते…. ही है।2:47 जो कहता ही कि कर्म करो परंतु उसके फल के बारे में सोचे बिना। अनासक्त भाव से कर्म। मतलब आपका जो कर्तव्य है, स्वयं अपने प्रति, परिवार के प्रति, समाज के प्रति, देश और संसार के प्रति, वो आप पूरी निष्ठा और समर्पण से करो।
3. कर्तव्य क्या है – धर्म के अनुसार आचरण ही कर्तव्य है। बिना किसी आसक्ति और फल की इच्छा के बिना धर्मानुसार किए जाने वाला कर्म।
4. आसक्ति-Moha और फल क्या है – आसक्ति मतलब, जो हमारे बुद्धि को प्रभावित करे और धर्मानुसार कर्म करने से रोकने की क्षमता रखती हो। फल, कर्म का परिणाम है। अगर फल सोच कर कर्म किया जाये तो कर्म में पूरा ध्यान नहीं लगेगा और बिना मन और बिना full डेडिकेशन के किया गया कर्म जो सोचा वो परिणाम नहीं देगा। जिससे क्रोध उत्तपन होगा और जो बाक़ी और समस्याओं को जनम देगा।
5. ज्ञानयोग के द्वारा बुद्धि विकसित होती है जो अनासक्त कर्म को प्रोत्साहित करती है। इसका मतलब ये है की किसी भी काम को करने से पहले उसके बारे में पूरी नॉलेज होनी चिये। कोई भी काम पूरे dedication से किया जाए तो उसके आने वाले परिणाम (फल) की चिंता अपने आप समाप्त हो जाती है।
6. ज्ञानयोग और कर्मयोग का ज्ञान – सबसे बड़ा सवाल ये है की जो गीता नहीं पढ़े उनको ये सब कैसे पता चले और ये सब सोचना और करना इतना आसान भी नहीं। practical implementation कैसे हो।
मेरे ख़याल से ये सब संस्कारो से आएगा। संस्कार गुरु, माता पिता, मित्र या उत्तम संगत से मिलते हैं। जैसे एक चिंगारी ही बहुत होती है बड़ी आग के लिए उसी तरह बहुत से लोगों को समझने के लिए एक छोटी कोशिश काफ़ी है।
तो निष्काम कर्म करना आसान नहीं पर कोई भी चीज़ भले वो ज्ञान, कर्म या भक्ति हो वो अभ्यास से ही आगे बढ़ सकती है। तो इन सभी बातों को धीरे धीरे छोटे छोटे कदम अपना कर अभ्यास में लाया जा है। dhyan और आहार की भूमिका भी बहुत बड़ी है, बुद्धियोग से निष्काम कर्म के लिए।
What motivates us to perform actions? Karma?
Ans: 1. Our survival needs-Eating Sleeping Mating, Defending Or Protection 2. Name & Fame 3. Desire to fulfill desires of family 4. To compete with others. 5. Being human wants to know Who am I? My relationship with God/ Nature. and so on.
Conclusion of the above. Do we know what way to act rightly. Why present situations of confrontation, Conflicts and so on. Ans: Law of Karma is no different than western saying“ As you sow, So shall you reap” A mantra in the kathopanishad declares that a Soul is reborn in accordance with “what it did” and “What it learnt”. This highlights the place for BG Gyan.
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 03
श्लोक संख्या 36
अर्जुन का प्रश्न :- हे कृष्ण ! यह मनुष्य स्वयं न चाहता हुआ भी बलात् लगाये हुए की भाँति किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है ?
उत्तर:- भगवान ने दूसरे अध्याय में भी पहले यह बात कही थी कि जो बुद्धिमान साधक मनुष्य है , उसके मन को भी इंद्रियां बलात् विचलित कर देती हैं । व्यवहार में भी हम देखते हैं कि जो बुद्धिमान और विवेकशील मनुष्य होते हैं वह प्रत्यक्ष में और अनुमान से पापों का बुरा परिणाम देखकर अपने विचारों द्वारा उनमें लिप्त होना ठीक नहीं समझते। वह इच्छापूर्वक पाप नहीं करते जैसे कोई रोगी कुपथ्य का सेवन करता है तो वह अपना स्वास्थ्य बिगाड़ लेता है। इसी प्रकार अर्जुन भगवान से इस बात का निर्णय कराना चाहते हैं किस मनुष्य को बलात् पापों में लगाने वाला कौन है ?
क्या परमेश्वर ही लोगों को पाप में लगाते हैं ? या फिर प्रारब्ध के परवश होकर उन्हें पाप करने पड़ते हैं ? या फिर कोई दूसरा ही कारण है ?
इसके उत्तर में भगवान कहते हैं कि जो रजोगुणी मनुष्य होते हैं उनमें काम और क्रोध बहुत अधिक होता है और काम और क्रोध बढ़ता ही जाता है यह बड़ा पापी है अगर किसी को कुछ मिल जाए तो उसको ओर- ओर यानि लोभ की चाहना लगती है। तो काम और क्रोध इस के दो मुख्य कारण है।विचारशील मनुष्य पाप करना तो नहीं चाहता पर उस के अंदर सांसारिक भोग और संग्रह की इच्छा रहने से वह अपने करने योग्य कर्तव्य कर्म नहीं कर पाता, और न करने योग्य पाप कर्म कर बैठता है। भगवान ने बताया कि राग और द्वेष जो काम और क्रोध के ही सूक्ष्म रूप है मनुष्य के महान शत्रु हैं अर्थात दोनों पाप के कारण हैं। इसका मुख्य कारण कामना ही होती है कामना ही मूल में विवेक को ढकने वाली है। कामना उत्पन्न होते ही बुद्धि काम करनी बंद कर देती है। जिस वस्तु पदार्थों की भी कामना करते हैं वह वस्तु हमारे पास सदा रहने वाली नहीं है। ऐसा विचार करने से कामना नहीं रहती कामना के बढ़ने पर कर्तव्य और अकर्तव्य का ज्ञान भी नहीं रहता और कामना में जब बाधा पड़ जाती है तो क्रोध उत्पन्न होता है तो उससे विवेक काम करना बंद हो जाता है बुद्धि नष्ट हो जाती है और मनुष्य करने योग्य कार्य नहीं करता और झूठ, कपट, बेईमानी, अन्याय,पाप अत्याचार आदि न करने योग्य कार्य करने लगता है।हरे कृष्ण
Chapter 03
Karma and Liberation
Karma, or fruitive work, brings both material enjoyment and material suffering. Whether the results of action are pleasant or unpleasant, however, they bind one to the bondage of repeated birth and death in the material world.
Krishna explains further that inaction is insufficient to save one from material reactions (and subsequent bondage to the material world).
By nature, everyone is forced to act. Even to maintain the physical body, one must work. Therefore, one should work in a way that will not further entangle one in material bondage, but will lead to ultimate liberation.
That art of work is karma-yoga—working and acting under the direction of the Supreme (Vishnu or Krishna) for His satisfaction: “Work done as a sacrifice to Vishnu has to be performed, otherwise work binds one to this material world. Therefore, O son of Kunti perform your prescribed duties for His satisfaction, and in that way you will always remain unattached and free from bondage.” (9) As described in later chapters of the Gita, karma-yoga gradually elevates one to bhakti-yoga.
वर्णव्यवस्था के अनुसार कर्म को 4 (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र ) भागो में बांटा गया है, संसार में रहते हुए इन चारो को अपना अपना कर्तव्य कर्म करना चाहिए, अर्तार्थ वर्ण के अनुसार कर्म करना इनका धर्म है, अगर यदि यह कर्म नहीं करेंगे तो यह अपने धर्म का पालन करने में असफल रहेंगे, अतः कर्म न करना भी अधर्म है ऐसा मनुष्य पाप का भागी है
1. मनुष्य प्रकृति के तीन गुणों के परवश होने के कारण कर्म किये बिना रह ही नहीं सकता। कर्म बन्धन के कारण ही जन्म मृत्यु के प्रवाह में ये जीव फंसा हुआ है। किंतु इससे वह पार हो सकता है। कैसे? कर्मों को अपने लिए न करके निष्कामभाव से दूसरों के हितार्थ करके। इससे प्रकृति का सिद्धांत का उलंघन भी नहीं होगा और मनुष्य सदा के लिए मुक्त भी हो जयगा।
2. दूसरी तरह से समझें, कि यह पूरी सृष्टि यज्ञमय है। परमात्मा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित हैं (3.15)। पेड़पौधे, नदियां, पर्वत, जंगल, पशुपक्षी सब अपना अपना कर्तव्यकर्म कर रहे हैं हमभी अपना कर्तव्यकर्म करके इस भवाटवी (जन्म-मृत्यु प्रवाह) से पार हो सकते हैं।
3. यह मानव जीवन केवल अपना कल्याण करने के लिए ही मिला है इसके अतिरिक्त इसका और कोई दूसरा उद्देश्य है ही नहीं।
4. सांसारिक कामना इस कल्याण में मुख्य बाधक है यह कभी पूरी नहीं हो सकती। इसे बैरी जानकर इसे बल पूर्वक मार डालने की आज्ञा श्रीकृष्ण इस अध्याय में देते हैं।
DISCLAIMER
The contents “Understanding Bhagwad Geeta
” by a group from WhatsApp DS-Geeta Joyride Life. Contributors are learning stages of Bhagwad Geeta or practitioners, as well as few teachers are contributors.
The very purpose is to make Bhagwad Geeta easily understandable for worldly persons.
In no way it is an authoritarian.
Contribution
By WhatsApp group-DS Geeta-Joyride Life