Bhagwad Geeta CH 02. – Our understanding-DS Joyride Life 25th Oct to 1st Nov 2020
Insight-Understanding-गहरी सोच
Ch 02- Sankhya Yog – Geeta Saar
समाधान-दुखों का निवारण Howsoever big problem
Yes, there is a solution to every problem provided you have right Guide or Guru like Krishna and Bhagvad Gita as guide.
Ans: Detachment – अनासक्त भाव
This detachment to people relatives, things as kingdom, Sakamkarma
Attachment to your prescribed duty and Dharma.
2nd Ch gives insight of:
1. Our true identity – Atma 2. Svadharma 3. Difference between truth and ignorance 4. KaramKand 5. Performing your karma in the manner
6. Samta & SthirBudhi.
The Bhagavad Gita, an ancient sacred text of India is regarded universally as the prime source of spiritual knowledge and inspiration for the humankind. Spoken directly by Lord Sri Krishna to His intimate friend Arjuna, the Bhagavad Gita’s seven hundred verses provide a definitive guide to the science of self-realization. No other book reveals, in such a lucid and profound way, truths like the Bhagavad Gita does. The Bhagavad Gita which is also known as the Divine Song is unique in many ways. |
2nd Ch is called Heart of BG.
Sankhya Yog
Following topics are covered.
1. Difference between Soul and Body.
2. What is our Dharma-Svadharma?
3. Art & Science of Karma.
4. Karma Kand?
5 Triguna
6. Samta & Sthitpragya
In chapter two Arjuna requests the Lord to instruct him how to eliminate his lamentation and grief.
This chapter is a summary to the entire Bhagavad-Gita.
Predominance has been given to the immortal nature of the soul existing within all living entities
What is Soul & Body?
They are two different things Body means physical which is made from 5 things and soul is conscious
श्रीमद्भागवत गीता अध्याय दो सांख्ययोग
प्रश्न (1) शरीर और आत्मा क्या है?
उत्तर:- शरीर जड़ है और आत्मा चेतन, एक नाशवान है एक अविनाशी, एक विकारी है एक निर्विकार, एक में प्रतिक्षण परिवर्तन होता है और एक अंत काल तक जो का त्यों ही रहता है। शरीर का निरंतर विनाश होता है और आत्मा का विनाश कभी नहीं होता।
आत्मा का शरीर की तरह स्थूल रुप देखने में नहीं आता और आत्मा चिंतन का विषय नहीं है और ना ही यह वाणी का विषय है क्योंकि इसका वर्णन नहीं कर सकते। आत्मा का नाश नहीं होता इसमें कभी कोई परिवर्तन नहीं होता इसका कभी जन्म नहीं होता कभी किसी तरह की कोई कमी नहीं आती।
इसके विपरीत शरीर उत्पन्न होता है, दिखता है, बदलता है, बढ़ता है, घटता है, और नष्ट होता है।
What is Aatma?
The Soul or Self which resides in the body is eternal, indestructible,
Immeasurable.
No science or scientific instrument & our senses are capable to know it.
Who is a Yogi?
Yogi can see beyond the scope of our senses. Sense without using common senses.
There are dimensions of life which can or be experienced by our basic
senses.
We cannot see ultraviolet lights with our eyes, we cannot hear ultra-sonic sound, but bees can. Our organs have limitations. But our soul do not have limitation.
To access the senses of the soul we have to create this body capable of accessing those powers for that there is Yog. There are different classifications of Yog. One of which is as follows.
Yog have stages.
Yam
Niyam
Asana
Pranayam
Pratyahara
Dharna
Dhyan
Samadhi.
When you clear all stages of Yog except Samadhi. You already became something else. But when you also passed Samadhi. Senses no longer is a limitation for you. You can sense different dimensions of life and universe.
Sharir tatha Atma ka close relationship hay, Sharir hay tab tak Atma ka abhas hay, tatha, jab Sharir nahi tou Atma ka gayan anigma. So Atma ka Sahara sharir ki raksha tatha proper maintenance ka gayan hay.
Samta – Equainimity of Mind is a formula to achieve peace.
1. 2:37-38 according to Sankhya Yog
2. 2:39-43 according to Karma Yog
This Samta or act in intelligence Buddhyog Showers all Bliss in Life
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 18, श्लोक 67
प्रश्न: – श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान लेने के लिए कौन इसके अधिकारी नहीं हैं ?
उत्तर: – श्रीमद्भगवद्गीता शास्त्र बड़ा ही गुप्त रखने योग्य विषय है अतः जो मनुष्य स्वधर्म पालनरूप तप करने वाला न हो, भोगों की आसक्ति के कारण सांसारिक विषयसुख के लोभ से अपने धर्म का त्याग करके पाप कर्मों में प्रवृत्त रहता है, ऐसे मनुष्यों को भगवान के गुण, उनके प्रभाव, और उनके तत्व के वर्णन से भरपूर यह गीता शास्त्र नहीं सुनाना चाहिए:, क्योंकि वह इसको समझ नहीं सकेगा और इसे धारण भी नहीं कर सकेगा । इससे इस उपदेश का और साथ ही साथ परमात्मा का भी अनादर होगा।
इसमें मुख्यतः बात यह है कि जिसका भगवान में विश्वास, प्रेम, और पूज्य भाग नहीं है और जो अपने को ही सर्वेसर्वा समझने वाला नास्तिक है ऐसे मनुष्य को भी यह अत्यंत गोपनीय गीता शास्त्र नहीं सुनाना चाहिए, क्योंकि वह इसे सुनकर इसके भावों को न समझने के कारण इसे धारण नहीं कर सकेगा ।
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 02
प्रश्न: – श्लोक संख्या 54 में अर्जुन ने श्री कृष्ण भगवान से स्थिरबुद्धि पुरुष के विषय में चार प्रश्न किये हैं कि स्थिर बुद्धि वाले मनुष्य के क्या लक्षण हैं? वह कैसे बोलता है, कैसे बैठता है, और कैसे चलता है अर्थात व्यवहार करता है
उत्तर :- पहले अध्याय में अर्जुन को विषाद होने के कारण भगवान अब दूसरे अध्याय में उसे यह बता रहे हैं कि तुम कौन हो उससे उसका परिचय दे रहे हैं कि तुम एक शरीर नहीं हो आत्मा हो। फिर उसे भगवान ने समझाया कि तुम्हारा धर्म क्या है यानी कि तुम क्षत्रिय हो उसका धर्म युद्ध करना है । लाभ-हानि सुख-दुख को छोड़कर युद्ध करो । फिर भगवान ने उसे बताया कि तुम्हारा कर्म क्या है ज्ञान योग के द्वारा समझाया और फिर उसके बाद उसको कर्म योग के द्वारा उसका कर्म समझाया।
स्थितप्रज्ञ के बारे में उत्तर देते हुए भगवान कह रहे हैं कि स्थितप्रज्ञ वह है जो कामना नहीं करते, कर्म को धर्म समझकर करते हैं, जो दुख में दुखी व सुख में सुखी नहीं होते, मति को स्थिर रखते हैं, और वह हर समय सम रहते हैं ।
बुद्धि में स्थिरता तभी आएगी जब समता की प्राप्ति होगी जिसकी बुद्धि स्थिर है उसी में समता आ सकती है।
स्थतप्रज्ञ अपनी पांचों इंद्रियों और एक मन इन छहों को अपने अपने विषय से हटा लेता है किंतु इंद्रियों का विषय से हट जाना स्थितप्रज्ञ का लक्षण नहीं है क्योंकि इंद्रियों को विषय से हटाने पर विषय तो निवृत हो जाते हैं पर साधक के भीतर विषयों में जो रस बुद्धि सुख बुद्धि है वह जल्दी निवृत्त नहीं होती इसलिए स्थिरबुद्धि वाले मनुष्य में समस्त कामनाओं का अभाव भौतिक साधनों की अपेक्षा न रखकर अंतरात्मा में ही सदा संतुष्ट रहना, दुखों से उद्विग्न न होना, सुखों में स्पृहा न करना, राग, भय, और क्रोध का सर्वथा अभाव, शुभाशुभकी प्राप्ति में हर्ष – शोक और राग- द्वेष का न होना तथा समस्त इंद्रियों को विषयों से हटाकर अपने वश में रखना आदि स्थिरबुद्धि पुरुष के लक्षण हैं। यदि बुद्धि में स्थिरता आ जाए तो सब दुखों का समाधान हो जाए यानि कि निवारण हो जाए।
WHAT IS KARMA KAND?
Karma kanda refers to the furtive activities and sacrifices for elevation to heavenly planets i.e., svarga loka. Therefore, one who wants to attain the heavenly planets must sacrifice.
How does this karma kanda lead to Krishna?
In reply to this:
Generally, in order to perform any Yajna, there is need for a qualified Brahmana. They perform the sacrifice to Vishnu, or Krishna. The Lord blesses the sponsor of the sacrifice with the promised Punya.
Before and after the sacrifice, naturally the sponsor will hear from the Brahmana’s about various topics because they are saintly persons. So it is only a matter of time before they hear about a goal higher than even the heavenly planets.
“Just as the sun’s rays in the sky are extended to the mundane vision, so in…
WHAT IS SAMTA?
समता:- समता का अर्थ है अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थिति में समान बने रहना, अर्थार्थ सुख-दुःख, लाभ-हानि में समान बने रहना समता का विशेष महत्व है समता आधार है एक अच्छे निष्काम कर्मी, कर्मयोगी, अच्छे भक्त का.
भगवान् की श्रद्धापूर्वक भक्ति के लिए समता का होना आवश्यक है, क्योंकि समता वाला व्यक्ति ही अच्छा ध्यान (Meditation) कर सकता है
हरि बोल 🙏 हरि शरणं 🙇
हरे कृष्ण!!
1. गीता का दूसरा अध्याय संख्या योग गीता का प्राण है। देह-देहि, शरीर-शरीरी, सत-असत,कर्तव्य-अकर्तव्य के भेद विस्तार से श्रीकृष्ण ने अर्जुन को माध्यम बनाकर हम जीवों को समझाया है। शरीर संसार अनित्य है और इसमे विद्यमान आत्मा नित्य है। शरीर नाशवान और आत्मा सदा ही अविनाशी है।
2. मनुष्य जब बुराई में अच्छाई को देखता है तो उससे तब बुराई से बचना अत्यन्त कठिन है। अर्जुन युद्धरूपी कर्तव्य कर्म में हिंसा होना देखता है। भगवान के अनेक तरह से समझाने पर भी अर्जुन अपने मताग्रह को छोड़ना नहीं चाहते।
3. एक निश्चयात्मिका बुद्धि कृष्णभावनामृत में ही हो सकती है इसके अतिरिक्त तो भौतिक संसार मे बुद्धि अनेक शाखाओं में विभक्त हो जाती है और मनुष्य को जन्म मृत्यु रूपी बन्धन में डालती है।
4. योग में स्थित रह कर कर्म करना ही कर्मों में कुशलता है न कि कर्मों में कुशलता योग।
5. समता में रहकर स्थिर बुद्धि के लक्षण।
DISCLAIMER
The contents “Understanding Bhagwad Geeta
” by a group from WhatsApp DS-Geeta Joyride Life. Contributors are learning stages of Bhagwad Geeta or practitioners, as well as few teachers are contributors.
The very purpose is to make Bhagwad Geeta easily understandable for worldly persons.
In no way it is an authoritarian.
Contribution
By WhatsApp group-DS Geeta-Joyride Life